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विश्वास की दवा
Moral Story विश्वास की दवा:- श्यामपुर के वैद्य जगन्नाथ जी एक माने हुए वैद्य थे। स्वयं की बनाई दवाईयों से वह लोगों की शारीरिक समस्याओं को बिल्कुल दूर कर देते थे और गए से गए रोगियों के रोग दूर करके उन्हें तुरन्त खड़ा कर देते थे। अभी तक तो शायद ही कोई ऐसा रोगी उनके पास आया होगा जो अपने रोग से रोग मुक्त न हुआ हो। (Moral Stories | Stories)
एक दिन की बात है कि वैद्य जी अपने दवाखाने में बैठकर दवा बना रहे थे तभी एक व्यक्ति जो देखने में कोई रोगी ही मालूम पड़ रहा था। वह आकर बोला, "वैद्य जी, आपने तो यहां पर बहुत से लोगों के बड़े रोगों का इलाज किया है। पता नहीं आप मेरा इलाज कर भी पाएंगे या नहीं"। इस पर वैद्य जी ने उस व्यक्ति की नब्ज देखते हुए पूछा, "क्या रोग है तुम्हें?" तो वह व्यक्ति बोला, "पता नहीं वैद्य जी, मुझे क्या हो गया है, जिस रोग के बारे में, मैं सोचता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि वही रोग मुझे हो गया है। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। बस दिमाग में हमेशा तनाव रहता है। मैं दिन पर दिन कमजोर भी होता जा रहा हूं। क्या आपके पास कोई ऐसी दवा है, जिससे मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊं?" इतना सुनकर तो वैद्य जी को पूरा यकीन हो गया कि यह व्यक्ति कुछ और नहीं बल्कि वहम का शिकार है। वैसे तो वहम का कोई भी इलाज नही है लेकिन एक वैद्य होने के नाते मेरा कुछ कर्तव्य तो बनता ही है कि मैं इस रोगी के लिए कुछ करूं। तो वैद्य जी फिर एकदम पूरे यकीन के साथ बोले, "अरे साहब, यह रोग तो कुछ भी नहीं, मैंने तो बड़े से बड़े रोग अच्छे किए हैं"। इस पर वह व्यक्ति प्रसन्न भाव से बोला, "तो आप मुझे दवा देंगे न वैद्य जी?" तो वैद्य जी बोले, "हां-हां, क्यों नहीं। वैसे भी तुम्हारे रोग को तो मैं पूरी तरह से समझ ही चुका हूं। वैसे ये कोई खास बड़ा रोग नहीं है। मुझे इस रोग की दवा बनानी पड़ेगी जिसके लिए मुझे आज का पूरा दिन चाहिए, ताकि मैं इत्मीनान से तुम्हारे रोग के लिए दवा तैयार कर सकूँ। तुम ऐसा करना कि कल आ जाना। तुम्हें मैं पूरी तरह से तैयार दवा दे दूंगा, जिसे खाकर तुम एकदम ठीक हो जाओगे"। वैद्य जी की बातों को वह व्यक्ति मान गया और प्रसन्नता पूर्वक लौट गया। (Moral Stories | Stories)
जब अगले दिन वह व्यक्ति, वैद्य जी के पास आया तो वैद्य जी ने उसे कुछ दवाएं, देते हुए कहा, "जरा कुछ बातों का ध्यान रखना, दवाई समय-समय पर खाना और जो मैंने इस पर्ची में परहेज लिखा है, वह भी जरूर करना, नहीं तो तुम अच्छे नही हो पाओगे"। तब वह व्यक्ति पूरी सहमति से बोला, "मुझे तो अच्छा होना है वैद्य जी इसके लिए आप जैसा भी बोलेंगे, मैं वैसा ही करूंगा"। ऐसा कहकर वह व्यक्ति दवा लेकर अपने घर को चला गया।
कुछ दिन इसी तरह बीत गए। फिर एक दिन वही व्यक्ति वैद्य जी के पास बड़ी खुशी-खुशी आया। आज तो वही व्यक्ति कुछ...
कुछ दिन इसी तरह बीत गए। फिर एक दिन वही व्यक्ति वैद्य जी के पास बड़ी खुशी-खुशी आया। आज तो वही व्यक्ति कुछ बदला-बदला सा दिखाई दे रहा था। सेहत में बढ़ोतरी, चेहरे पर नई चमक और स्वयं में नया उत्साह प्रतीत हो रहा था। वह व्यक्ति वैद्य जी के सामने हाथ जोड़कर बोला, "वैद्य जी, मैं तो आपको मान गया। आपने तो मुझे बिल्कुल ही अच्छा कर दिया"। इस पर वैद्य जी उस व्यक्ति की ओर एक टुक होकर देखते हुए बोले, "तो तुम ठीक हो ही गए"। तब वह व्यक्ति बोला, "जी वैद्य जी, यहां सब आपकी ही कृपा है। (Moral Stories | Stories)
लेकिन वैद्य जी, एक बात बतलाइए कि मुझे ऐसा कौन सा रोग हो गया था? इसका क्या नाम है? और आपने उस रोग के लिए मुझे कौन सी दवा दी थी?" तो वैद्य जी मुस्कुराते हुए बोले, "तुम्हें वहम रोग हो गया था और मैंने तुम्हें विश्वास की दवा दी थी"। इस पर वह व्यक्ति बड़े आश्चर्य में पड़ गया ओर बोला, "मैं कुछ समझा नहीं वैद्य जी, जरा आप स्पष्ट तो बतलाओ"। तो वैद्य जी बोले, "ऐसा है जनाब, तुम्हें कोई भी रोग नहीं था। बस तुम वहम के शिकार थे। इसी वहम के द्वारा तुम्हें छोटी-मोटी तकलीफों नें घेर रखा था और तुम्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। तो उसकी वजह भी यही वहम था। इस वहम का वैसे तो कोई भी इलाज नहीं है। यदि कोई इलाज है भी तो वह है रोगी का, दवा और दवा देने वाले पर पूर्ण विश्वास। तुम अच्छे तो उसी दिन हो गए थे जिस दिन तुम मेरे पास आए थे। क्योंकि उसी दिन मैंने तुम्हें यह पूरी तरह से विश्वास दिला दिया था कि मैं तुम्हें वास्तव में ठीक कर सकता हूं"।
वह व्यक्ति वैद्य जी की तरफ बड़ी ध्यान पूर्वक देख रहा था। तब वैद्य जी ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, "फिर मैंने तुमसे एक दिन का समय मांगा ताकि तुम्हें और अधिक विश्वास हो जाए कि मेरे पास वास्तव में इस रोग की दवा भी है। जब मैंने देखा कि तुम्हें पूरा विश्वास हो रहा है कि अब तुम मेरी दी हुई दवा के कारण बिल्कुल ठीक हो जाओगे तो फिर मैंने ऐसा कह कर तुम्हारा विश्वास और भी अधिक पक्का कर दिया, कि दवा समय पर खाना और पूरा परहेज करना। बस यही विश्वास की दवा मैंने तुमको दी थी"। तब वह व्यक्ति बड़ी उत्सुकता से बोला, "लेकिन वैद्य जी, जो आपने मुझे दवा खाने के लिए दी थी, वह क्या थी?" तो वैद्य जी बोले "वह तो एक मामूली सी भूख बढ़ाने की दवा थी, जिसे खाकर तुम्हारी भूख बढ़ने लगी, जब भूख बढ़ी तो तुम्हारा मन प्रसन्न रहने लगा, फिर तुम्हें सब कुछ अच्छा लगने लगा और तुम्हारे दिमाग का तनाव भी खत्म हो गया जो इसी वहम के कारण उत्पन्न हुआ था। तुमने अपने आपको स्वस्थ महसूस किया तो तुम वास्तव में स्वस्थ हो गए"।
वैद्य जी की बातों को सुनकर वह व्यक्ति विनम्रता से हाथ जोड़कर बोला, "आप बिल्कुल सच बोल रहे हो वैद्य जी, मैं वास्तव में वहम रोग का शिकार हो चुका था। मुझे इस वहम रोग से अच्छा करने के लिए जो आपने मुझे विश्वास की दवा दी, शायद उससे बेहतर मेरे लिए और कोई दवा हो ही नहीं सकती थी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद वैद्य जी"। ऐसा कहकर वह व्यक्ति प्रसन्नता से अपने घर की तरफ चल दिया। (Moral Stories | Stories)
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